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देवता: पवमानः सोमः ऋषि: कश्यपः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

रसं॑ ते मि॒त्रो अ॑र्य॒मा पिब॑न्ति॒ वरु॑णः कवे । पव॑मानस्य म॒रुत॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rasaṁ te mitro aryamā pibanti varuṇaḥ kave | pavamānasya marutaḥ ||

पद पाठ

रस॑म् । ते॒ । मि॒त्रः । अ॒र्य॒मा । पिब॑न्ति । वरु॑णः । क॒वे॒ । पव॑मानस्य । म॒रुतः॑ ॥ ९.६४.२४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:64» मन्त्र:24 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:40» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:24


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पवमानस्य) सबको पवित्र करनेवाले जो आप हैं, ऐसे आपके (रसं) रस को (मित्रः) समदर्शी विद्वान् (वरुणः) विज्ञानादि गुणों से सृष्टि को आच्छादन करनेवाले (मरुतः) कर्मयोगिगण (ते कवे) तुम जो सर्वज्ञ हो, ऐसे आपके रस को (अर्यमा) न्यायकारी लोग (पिबन्ति) पान करते हैं ॥२४॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष कर्मयोगी तथा ज्ञानयोगी है, वही उस परमात्मा के आनन्द को पान कर सकता है, अन्य नहीं। तात्पर्य यह है कि परमात्मा के समान परमात्मा का आनन्द भी सर्वत्र परिपूर्ण है, परन्तु विना उक्त उपदेश से वा यों कहो कि सर्वोपरि साधन के विना उसके आनन्द का कोई भी उपभोग नहीं कर सकता, इसीलिये यहाँ उक्त प्रकार के योगियों का कथन किया है कि उक्त योगी ही उसके आनन्द को भोगते हैं ॥२४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पवमानस्य) सकलपावकस्य भवतः (रसम्) रसं (मित्रः) समद्रष्टारः (वरुणः) विज्ञानादिभिर्गुणैः सृष्टेराच्छादका विद्वांसः (मरुतः) कर्मयोगिनः (ते कवे) सर्वज्ञस्य तव रसं (अर्यमा) न्यायकारिणः (पिबन्ति) पानं कुर्वन्ति ॥२४॥